ना मंजिल की फ़िक्र हो.. ना रहे समय का होश..
ना थकान का हो कोई निशाँ.. बस यूँ चलते रहने का जोश..
साथ रहे सब यार अपने.. करते रहें नयी राहों की खोज..
मस्ती में चलते रहना हमें.. अपनी यही सोच..
जंगल हो या बर्फ, पहाड़ हो या रेगिस्ताँ..
चाहे ना मिले कहीं आसरा, ये दुनिया अपना मकाँ..
फिर ओढें आसमाँ की चादर.. ये धरती बने अपनी सेज..
पहियों की फिर क्या दरकार .. जब हिम्मत पे चले हम तेज़..
कलकल करती नदियाँ हों .. पेड़ पौधे हों खामोश..
मिलने अपनी मिटटी से .. निकल पड़े हम खानाबदोश..
Excellent work, Chetan..keep going..
ReplyDeleteA fidgety mind, a restless soul
ReplyDeleteexploring places our only goal
sand,sea,forest or mountain
bikes ,trains, jeep or train
an idea of tour makes us tipsy
we are the one, the gypsyingypsy
awesome dipeshwa..
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